सुकून

तखरीरें, तसवीरें और तस्सवुर

क्या कभी सफों से उभर भी पायेंगे?

जलसों और महफिलों में ज़िक्र हुआ जिनका
वोह लफ्स क्या कभी जिंदा भी हो पायेंगे?

जो शमा उन महफिलों को रोशन करती थी
क्या वोह कभी अंगार बनेगी भी?

वोह कौन सा है सुरूर, वोह कौन सा है नशा
वोह कौन सी है नींद जिसकी चादर ओढ़े यह समा सोया हुआ है?
अगर सुकून की है यह नींद तोह यह सुकून क्या है?
इस सुकून का मुझे हासिल क्यों नहीं?

सोचता हूँ मैं अक्सर की सोचता हूँ क्यों मैं
जब यह समा ही बेहोश सा इस सुरूर में डूबा
सुकून की नींद सोता है
अगर इस सुकून की ही तलाश में है मेरा दिमाग
तोह क्यों ना मैं भी चख लूं इस नशे को
और खो जाऊं इन लफ्सों, इन जलसों, इन शमाओं के परे...

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