ख्वाहिशें

शाख  पे  बैठे  हुए  एक  पत्ते  की  तरह
हवा  के  झोंके  का  इंतज़ार  करते  हुए
ज़िन्दगी  कुछ  इस  तरह  गुज़र  रही  है  जैसे

कोई  आस  ही  न  रह  गयी  हो
कभी  धुप, कभी  छाओं  की  अत्थ्खेलियों  में
अपने  वजूद  की  तलाश  में
इधर  उधर  बे-मकसद  उड़ते  हुए
ज़िन्दगी  कुछ  इस  तरह  गुज़र  रही  है  जैसे

आस  का  एक  पंची  बना
खुली  हवा  को  सिर्फ  नज़रों  से  देखता
पिंजरे  में  बंद  एक  पंच्छी  जैसा  मैं
ज़िन्दगी  बस  गुज़र  रही  है  ऐसे...

Comments

Simran said…
Beautiful Ram! :-)

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